Tuesday, August 12, 2014

वो बचपन के दिन......


क्या दिन भी थे वो बचपन के, जो बंदिश में भी अच्छे थे,
हर एक डगर सुहाना था, न मंज़िल पाने की जल्दी थी.

वो झूठा स्वांग रचना था, फिर छुपके किसी को डराना था,
खेल खेल में मस्ती थी, फिर अगले पल ही लड़ना था.

स्कूल ना जाने की जिद थी, पर डब्बे का स्वाद भी प्यारा था.
बस्ते का बोझ तो ज्यादा था, फिर भी वो बस्ता प्यारा था,

कक्षा में डर के पढ़ना था, फिर मध्यावकाश हमारा था.
मस्ती तो सबको प्यारी थी, पर सबसे प्यारी यारी थी.

मेले के दिन क्या कहने थे, जब दिल खोल के घुमा करते थे,
वो गरम समोसे और जलेबियाँ, जी भर के खाया करते थे.

खूब पटाखें जलते थे, जब खुशियों की दीवाली आती थी,
मस्ती थी होली के रंगो मे, एक दूजे के घर जाते थे.

करते शैतानी ज्यादा थे, पर हम बच्चे मन के सच्चे थे,
क्या दिन भी थे वो बचपन के, जो बंदिश में भी अच्छे थे.

====> Siddesh Tiwari (August 12th, 2014)

Monday, August 11, 2014

माँ - एक अद्भुत और अतुलनीय रचना..


वो बचपन की शरारत मे डांट खाना,
फिर वो हाथ जो आंशु पोंछते हैं, "वो है माँ".

वो परीक्षा के समय देर रात तक पढ़ाई करना,
फिर वो हाथ जो दूध का ग्लास देते हैं, "वो है माँ".

वो शर्दीयों मे सोते हुए कंबल का बदन से हटना,
फिर वो हाथ जो कंबल उढ़ाते हैं, "वो है माँ".

वो बीमारी मे बिस्तर पर पड़े हुए तन का जलना,
फिर वो हाथ जो सर पे ठंडी पट्टियाँ रखते हैं, "वो है माँ".

वो परीक्षा के लिये घबराये हुए घर से निकलना,
फिर वो हाथ जो सर पे रखकर आशीष देते हैं, "वो है माँ".

वो स्कूल से भूखे पेट घर को आना,
फिर वो हाथ जो खाना परोसते हैं, "वो है माँ".

वो खेलते समय चोटिल हो घर को लौटना,
फिर वो हाथ जो मरहम लगाते हैं, "वो है माँ".

वो परीक्षा के परिणाम का व्याकुलता से इंतज़ार करना,
फिर वो हाथ जो भगवान से सफलता की दुआ माँगते हैं, "वो है माँ".

वो हमारे हर कदम का सफलता की कोशिश मे लड़खड़ना,
फिर वो हाथ जो हमेशा सहारा देते हैं, "वो है माँ".

वो हंसना, खेलना, लड़ना, झगड़ना, रूठना, रोना,
फिर वो हाथ जो हर वक़्त हर कदम आंचल के साये मे रखते हैं, "वो है माँ".

====> Siddesh Tiwari (Composed on June 8th, 2014)